Translate

Friday, May 15, 2020

ऑनलाइन शिक्षा::कुछ दबे से सवाल

 आज सुबह-सुबह अपनी गौशाला की तरफ जाते हुए मेरे गांव की दादी जी ने मुझसे कुछ ऐसा सवाल किया-
नानी! तुम भी फोन पर काम दे रही हो बच्चों को ??मैंने बोला, हां, थोड़ा बहुत। वो बोली स्कूल कब तक खुलेंगे, अब तो खुलेंगे ना? इसका जवाब मेरे पास भी ना था। मैंने कहा, शायद जुलाई तक देखो। फिर वह अपने मन की बात पूछने पर आई और बोली जिनके पास फोन नहीं है, वह क्या करेंगे? मुझे अब कुछ समझ आया। उनके 5 पोते पोतियां हैं जो एक ही परिवार से है।
जहाँ पूरे देश में लॉक डाउन के कारण अप्रैल से नये शिक्षा सत्र में बच्चे स्कूल नही जा पा रहे वहीं आज पहली प्राथमिकता दैनिक जरूरतों को पूरा करना है और पड़ोस के घरों में फोन पर ऑनलाइन काम आता होगा तो बच्चों की मांग उठना स्वाभाविक ही है हमें भी फोन चाहिए, चाहे वह परिवार कल की राशन पानी की जुगत में लगा हो। 
यह बात अलग है कि वह ऑनलाइन काम करने में बच्चों का ध्यान कितना है, वह फोन पर आते ही गेम यूट्यूब पर कोई वीडियो सर्च करने में लगे हैं। यह बात स्वयं बच्चे अपने अनुभव से बता रहे हैं कि पढ़ाई के नाम पर आजकल घरवालों से फोन लेना बहुत आसान हो गया है।
कुछ बच्चे जिनके लिए गुरुजनों का आदेश सर्वोपरी होता है। सुबह से शाम तक पूरा दिन उस काम को उतारने में लगे हैं जिसकी उनको एक लाइन तक समझ नहीं आ रही।एक बच्ची अपनी मां के पास आकर शाम को हाथ दबवाती है ,आज पूरे दिन 40 पेज लिखे माँ हाथ दर्द हो गया।
बाल केंद्रित शिक्षा, जीवन के लिए शिक्षा किन-किन सिद्धांतों को लेकर हम शिक्षा को देने की बात करते हैं जहां एक और पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है, एक  ऐसा जीव मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ है जो दिखाई तक नहीं देता। प्रकृति मनुष्य को उसके अस्तित्व के असली रूप का परिचय दे रही है और हमने बच्चों को आज भी उन्हें कागजों के ढेर में दबा कर रखा हुआ है। कुछ स्कूलो के बच्चे कंप्यूटर स्क्रीन के सामने स्कूल ड्रेस में बन्द कमरे में बैठे पढ़ रहे हैं न शारीरिक स्वास्थ्य है न मानसिक स्वस्थ्य कैसी शिक्षा है ये?
हमें एक शिक्षक को पुनः विचार करने की आवश्यकता है कि आखिर हम शिक्षा दें किसके लिए रहे हैं । अप्रैल-मई का सिलेबस हम फोन पर उतरवाकर ही पूरा करना चाह रहे हैं। हमारी प्राथमिकता क्या है? बच्चा या पाठ्यक्रम??
समान शिक्षा समान अवसर उनके लिए कहाँ है जो प्रश्न सुबह-सुबह आज पूछा गया।शिक्षक की भूमिका सहयात्री के रूप में हो,प्रकृति आज पूरी दुनिया के लिए प्रत्यक्ष आदर्श शिक्षक के रूप में प्रकट हुई है।
हमारा दायित्व बनता है कि हम साथ-साथ सीखते हुए बच्चों का साथ दें। दिया जाने वाला काम फोन की स्क्रीन के सामने बैठने वाला ना होकर कुछ ऐसा हो कि वह अपनी मां द्वारा जंगल से लायी गयी घास की पत्तियों के प्रकार देखें। वह गाय को घास खाते देखे जुगाली लगाते देखें।घर पर बनने वाला भोजन कितनी मेहनत से बनता है ,घर पर कितना लीटर पानी लगता है?
मेरी मां सारा दिन कितने किलोमीटर चलती है?मेरी दादी को कितनी कहानियां आती हैं? मेरे दादाजी लोगों के मकान कैसे बनाते हैं? हल कैसे लगाते हैं? मिट्टी के रंग देखो । मिट्टी की बनावट देखो ।देखो इस महामारी में अपने परिवार अपने गांव की समस्याएं ।जो लोग आगे आ रहे उनकी भूमिकाएं। उन सबके बीच बच्चे अपने जीवन अस्तित्व और पर्यावरण में आपसी तालमेल और प्रकृति का सम्मान सीखें।
ऐसा कौन सा विषय है जो बच्चा इस समय नहीं सकता। सच्ची शिक्षा नहीं ले सकता। यह तभी संभव हो शायद जब बच्चे को मोबाइल स्क्रीन और उसको कागज के टुकड़ों पर उतारने से फुर्सत मिल पाए। शिक्षक को दुश्मन की तरह दिख रहा है जो सारा दिन उसको एक बोझ तले दबाये हुए हैं।इसे ऐसे अवसर के रूप में देखा जाए, जहां छात्र और शिक्षक जीवन से जो कुछ भी सीख रहे हैं, उसको समूह में साझा करें। बालक है तो हमारी शिक्षा है। आओ एक बार उसके लिए विचार करें।

आज हम सभी इस एक नई समस्या से जूझ रहे हैं कमेंट कर अपने विचार जरुर दें जिससे हम सभी मिलकर एक निष्कर्ष तक पहुँच पायें।

Saturday, May 2, 2020

भारतीय संविधान और आजीविका का अधिकार :व्याख्यान सुदर्शन ठाकुर

 अंबेडकर जयंती व्याख्यानमाला के क्रम में 'सामाजिक विज्ञान स्वैच्छिक शिक्षक मंच पिथौरागढ़' द्वारा भारतीय संविधान और आजीविका का अधिकार विषय पर व्याख्यान  आयोजित किया गया था,जिसमें वक्ता थे सुदर्शन ठाकुर जो कि प्रदान संस्था मध्य प्रदेश में कार्यरत हैं। इनके द्वारा आजीविका,सामाजिक जागरुकता और जेंडर के मुद्दों पर विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित किया गया है। 'प्रदान संस्था 'भारत के पिछड़े और गरीब समूहों के बीच निर्धनता निर्धनता उन्मूलन के लिए कार्य कर रही है।
  इसकी नींव रमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्तकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता दीप जोशी और विजय महाजन द्वारा इस संस्था की नींव रखी गई थी। 
सुदर्शन ठाकुर जी व्याख्यान की शुरुआत में आजीविका का परिचय देते हैं और बताते हैं कि अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य जो भी काम करता है वह आजीविका कहलाती है।
हमारे संविधान में स्पष्ट रूप से आजीविका के लिए कुछ नहीं है किंतु विभिन्न अनुच्छेद, राज्य के नीति निदेशक तत्व तथा सुप्रीम कोर्ट के न्यायों की व्याख्या करने पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी आजीविका का अधिकार प्राप्त कर सकता है। 
इसमें उन्होंने कुछ अनुच्छेद की व्याख्या  की जैसे अनुच्छेद 14, 15 ,16, 24 और अनुच्छेद 39 ।सुदर्शन जी स्पष्ट करते हैं कि पेंशन, जनकल्याणकारी तथा जीवनयापन की सुविधाएं इसी के तहत भारतीय नागरिकों को प्राप्त है। आजीविका को महत्वपूर्ण शब्दों में स्पष्ट किया कि आजीविका  सिर्फ धन कमाने के लिए नहीं बल्कि अपनी क्षमता के अनुरूप समाज में योगदान तथा अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के रूप में देखा जाना चाहिए।
आजीविका की निम्न पांच पहलुओं की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि 
1)संपति- किसी मनुष्य के पास भौतिक(जंगल,जमीन) व सामाजिक( सुविधाएं) संपति हैं।
2)पहुँच-
कहां तक आदमी कितनी योजनाओं के लाभ ले सकता है?
3)क्षमता-उसकी अपनी क्षमताएं क्या हैं?
4)अभिवृति-
उसकी सोच कैसी है? जैसे उसके पास खेत हैं पर खेती करना पसंद नही।
5)आश्ववासन -
उसको भरोसा होना चाहिए कि जो भी उत्पादन हो उसका बाजारीकरण हो पाएगा या फिर कोई नुकसान होने पर मुआवजे की व्यवस्था होगी।
प्रदान संस्था के बारे में वे बताते हैं की यह 7 राज्यों में कार्य कर रही है और स्थानीय जरूरतों के अनुसार प्राथमिकताएं तय की जाती हैं।
  covid 19 के बाद पूरी सामाजिक दिशा और दशा बदली है। हमारे सामने नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं कि गांव में पड़ने वाले दबाव का हम क्या करेंगे? जो युवा वापस आकर तनाव में हैं उनके लिए क्या कर सकते हैं? 
इस वक्त गांव की तरफ से मांग होनी चाहिए कि उनके जंगल और जमीन पर निवेश हो। 
गांव में कुटीर उद्योगों को स्थापित करना होगा।
इन सब के बावजूद अभी जो मुख्य समस्याएं हैं, प्राथमिकता वही है पब्लिक हेल्थ ,साफ-सफाई ,असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूरों को किस प्रकार चिह्नित किया जाए?
 जिस प्रकार लॉक डाउन के इस दौर में हम इंटरनेट के माध्यम से बातचीत कर पा रहे हैं उसी प्रकार गांव में रोजगार के अवसर इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध कराए जाने पर काम करना होगा।
शिक्षकों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने बताया कि संविधान को पढ़ने और समझने की आवश्यकता है बच्चों तक यह गतिविधि, सामाजिक मुद्दों पर चर्चा के रूप में पहुंच सकता है। अंत में उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही कि "पढ़ाना बंद कर चर्चा शुरू करें।"

अजीम प्रेमजी फाउंडेशन पिथौरागढ़ से शोज़ाब अब्बास ,रुद्रप्रयाग से रिचा जी और सामाजिक विज्ञान स्वैच्छिक शिक्षक मंच पिथौरागढ़ का हार्दिक आभार।😊