आज सुबह-सुबह अपनी गौशाला की तरफ जाते हुए मेरे गांव की दादी जी ने मुझसे कुछ ऐसा सवाल किया-
नानी! तुम भी फोन पर काम दे रही हो बच्चों को ??मैंने बोला, हां, थोड़ा बहुत। वो बोली स्कूल कब तक खुलेंगे, अब तो खुलेंगे ना? इसका जवाब मेरे पास भी ना था। मैंने कहा, शायद जुलाई तक देखो। फिर वह अपने मन की बात पूछने पर आई और बोली जिनके पास फोन नहीं है, वह क्या करेंगे? मुझे अब कुछ समझ आया। उनके 5 पोते पोतियां हैं जो एक ही परिवार से है।
जहाँ पूरे देश में लॉक डाउन के कारण अप्रैल से नये शिक्षा सत्र में बच्चे स्कूल नही जा पा रहे वहीं आज पहली प्राथमिकता दैनिक जरूरतों को पूरा करना है और पड़ोस के घरों में फोन पर ऑनलाइन काम आता होगा तो बच्चों की मांग उठना स्वाभाविक ही है हमें भी फोन चाहिए, चाहे वह परिवार कल की राशन पानी की जुगत में लगा हो।
जहाँ पूरे देश में लॉक डाउन के कारण अप्रैल से नये शिक्षा सत्र में बच्चे स्कूल नही जा पा रहे वहीं आज पहली प्राथमिकता दैनिक जरूरतों को पूरा करना है और पड़ोस के घरों में फोन पर ऑनलाइन काम आता होगा तो बच्चों की मांग उठना स्वाभाविक ही है हमें भी फोन चाहिए, चाहे वह परिवार कल की राशन पानी की जुगत में लगा हो।
यह बात अलग है कि वह ऑनलाइन काम करने में बच्चों का ध्यान कितना है, वह फोन पर आते ही गेम यूट्यूब पर कोई वीडियो सर्च करने में लगे हैं। यह बात स्वयं बच्चे अपने अनुभव से बता रहे हैं कि पढ़ाई के नाम पर आजकल घरवालों से फोन लेना बहुत आसान हो गया है।
कुछ बच्चे जिनके लिए गुरुजनों का आदेश सर्वोपरी होता है। सुबह से शाम तक पूरा दिन उस काम को उतारने में लगे हैं जिसकी उनको एक लाइन तक समझ नहीं आ रही।एक बच्ची अपनी मां के पास आकर शाम को हाथ दबवाती है ,आज पूरे दिन 40 पेज लिखे माँ हाथ दर्द हो गया।
बाल केंद्रित शिक्षा, जीवन के लिए शिक्षा किन-किन सिद्धांतों को लेकर हम शिक्षा को देने की बात करते हैं जहां एक और पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है, एक ऐसा जीव मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ है जो दिखाई तक नहीं देता। प्रकृति मनुष्य को उसके अस्तित्व के असली रूप का परिचय दे रही है और हमने बच्चों को आज भी उन्हें कागजों के ढेर में दबा कर रखा हुआ है। कुछ स्कूलो के बच्चे कंप्यूटर स्क्रीन के सामने स्कूल ड्रेस में बन्द कमरे में बैठे पढ़ रहे हैं न शारीरिक स्वास्थ्य है न मानसिक स्वस्थ्य कैसी शिक्षा है ये?
हमें एक शिक्षक को पुनः विचार करने की आवश्यकता है कि आखिर हम शिक्षा दें किसके लिए रहे हैं । अप्रैल-मई का सिलेबस हम फोन पर उतरवाकर ही पूरा करना चाह रहे हैं। हमारी प्राथमिकता क्या है? बच्चा या पाठ्यक्रम??
समान शिक्षा समान अवसर उनके लिए कहाँ है जो प्रश्न सुबह-सुबह आज पूछा गया।शिक्षक की भूमिका सहयात्री के रूप में हो,प्रकृति आज पूरी दुनिया के लिए प्रत्यक्ष आदर्श शिक्षक के रूप में प्रकट हुई है।
हमारा दायित्व बनता है कि हम साथ-साथ सीखते हुए बच्चों का साथ दें। दिया जाने वाला काम फोन की स्क्रीन के सामने बैठने वाला ना होकर कुछ ऐसा हो कि वह अपनी मां द्वारा जंगल से लायी गयी घास की पत्तियों के प्रकार देखें। वह गाय को घास खाते देखे जुगाली लगाते देखें।घर पर बनने वाला भोजन कितनी मेहनत से बनता है ,घर पर कितना लीटर पानी लगता है?
मेरी मां सारा दिन कितने किलोमीटर चलती है?मेरी दादी को कितनी कहानियां आती हैं? मेरे दादाजी लोगों के मकान कैसे बनाते हैं? हल कैसे लगाते हैं? मिट्टी के रंग देखो । मिट्टी की बनावट देखो ।देखो इस महामारी में अपने परिवार अपने गांव की समस्याएं ।जो लोग आगे आ रहे उनकी भूमिकाएं। उन सबके बीच बच्चे अपने जीवन अस्तित्व और पर्यावरण में आपसी तालमेल और प्रकृति का सम्मान सीखें।
ऐसा कौन सा विषय है जो बच्चा इस समय नहीं सकता। सच्ची शिक्षा नहीं ले सकता। यह तभी संभव हो शायद जब बच्चे को मोबाइल स्क्रीन और उसको कागज के टुकड़ों पर उतारने से फुर्सत मिल पाए। शिक्षक को दुश्मन की तरह दिख रहा है जो सारा दिन उसको एक बोझ तले दबाये हुए हैं।इसे ऐसे अवसर के रूप में देखा जाए, जहां छात्र और शिक्षक जीवन से जो कुछ भी सीख रहे हैं, उसको समूह में साझा करें। बालक है तो हमारी शिक्षा है। आओ एक बार उसके लिए विचार करें।
आज हम सभी इस एक नई समस्या से जूझ रहे हैं कमेंट कर अपने विचार जरुर दें जिससे हम सभी मिलकर एक निष्कर्ष तक पहुँच पायें।
कुछ बच्चे जिनके लिए गुरुजनों का आदेश सर्वोपरी होता है। सुबह से शाम तक पूरा दिन उस काम को उतारने में लगे हैं जिसकी उनको एक लाइन तक समझ नहीं आ रही।एक बच्ची अपनी मां के पास आकर शाम को हाथ दबवाती है ,आज पूरे दिन 40 पेज लिखे माँ हाथ दर्द हो गया।
बाल केंद्रित शिक्षा, जीवन के लिए शिक्षा किन-किन सिद्धांतों को लेकर हम शिक्षा को देने की बात करते हैं जहां एक और पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है, एक ऐसा जीव मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ है जो दिखाई तक नहीं देता। प्रकृति मनुष्य को उसके अस्तित्व के असली रूप का परिचय दे रही है और हमने बच्चों को आज भी उन्हें कागजों के ढेर में दबा कर रखा हुआ है। कुछ स्कूलो के बच्चे कंप्यूटर स्क्रीन के सामने स्कूल ड्रेस में बन्द कमरे में बैठे पढ़ रहे हैं न शारीरिक स्वास्थ्य है न मानसिक स्वस्थ्य कैसी शिक्षा है ये?
हमें एक शिक्षक को पुनः विचार करने की आवश्यकता है कि आखिर हम शिक्षा दें किसके लिए रहे हैं । अप्रैल-मई का सिलेबस हम फोन पर उतरवाकर ही पूरा करना चाह रहे हैं। हमारी प्राथमिकता क्या है? बच्चा या पाठ्यक्रम??
समान शिक्षा समान अवसर उनके लिए कहाँ है जो प्रश्न सुबह-सुबह आज पूछा गया।शिक्षक की भूमिका सहयात्री के रूप में हो,प्रकृति आज पूरी दुनिया के लिए प्रत्यक्ष आदर्श शिक्षक के रूप में प्रकट हुई है।
हमारा दायित्व बनता है कि हम साथ-साथ सीखते हुए बच्चों का साथ दें। दिया जाने वाला काम फोन की स्क्रीन के सामने बैठने वाला ना होकर कुछ ऐसा हो कि वह अपनी मां द्वारा जंगल से लायी गयी घास की पत्तियों के प्रकार देखें। वह गाय को घास खाते देखे जुगाली लगाते देखें।घर पर बनने वाला भोजन कितनी मेहनत से बनता है ,घर पर कितना लीटर पानी लगता है?
मेरी मां सारा दिन कितने किलोमीटर चलती है?मेरी दादी को कितनी कहानियां आती हैं? मेरे दादाजी लोगों के मकान कैसे बनाते हैं? हल कैसे लगाते हैं? मिट्टी के रंग देखो । मिट्टी की बनावट देखो ।देखो इस महामारी में अपने परिवार अपने गांव की समस्याएं ।जो लोग आगे आ रहे उनकी भूमिकाएं। उन सबके बीच बच्चे अपने जीवन अस्तित्व और पर्यावरण में आपसी तालमेल और प्रकृति का सम्मान सीखें।
ऐसा कौन सा विषय है जो बच्चा इस समय नहीं सकता। सच्ची शिक्षा नहीं ले सकता। यह तभी संभव हो शायद जब बच्चे को मोबाइल स्क्रीन और उसको कागज के टुकड़ों पर उतारने से फुर्सत मिल पाए। शिक्षक को दुश्मन की तरह दिख रहा है जो सारा दिन उसको एक बोझ तले दबाये हुए हैं।इसे ऐसे अवसर के रूप में देखा जाए, जहां छात्र और शिक्षक जीवन से जो कुछ भी सीख रहे हैं, उसको समूह में साझा करें। बालक है तो हमारी शिक्षा है। आओ एक बार उसके लिए विचार करें।
आज हम सभी इस एक नई समस्या से जूझ रहे हैं कमेंट कर अपने विचार जरुर दें जिससे हम सभी मिलकर एक निष्कर्ष तक पहुँच पायें।