2 सितम्बर 2020
आज का दिन मेरे लिए बहुत खास था क्योंकि मुझे एक मौका मिला था पर्यावरण प्रेमी श्री सतेंद्र भंडारी जी के साथ जिले के विद्यालयों में पौधे बाँटने जाने का जो कि जिलाधिकारी महोदया और ADM जी के आदेश से प्राप्त हुए थे।
मैने लगभग 5:30 बजे सुबह फोन किया तो वे घर से निकल चुके थे।ये पूछने पर नाश्ता किया या नहीं तो बोले देर हो जायेगी मैं तो ऐसे ही चल पड़ा।
फ़िर मैने फटाफट चलने की तैयारी शुरु की और टिफिन पैक कर लिया। सात बजे करीब गाडी पर ADM महोदया ने स्वास्तिक बनाकर गाड़ी रवाना की जिसके फोटो हमने समूह में देखी।
उसके बाद मुझे भंडारी जी ने बताया कि वे पौधे देने क्वीलखाल की तरफ गये हैं।लगभग 9 बजे गाडियाँ बैनोली पहुँची कुल तीन जिनमें से 2 में पौधे भरे थे और एक में ट्री गॉर्ड थे।
एक गाडी में भंडारी जी मैं और प्रवीण जी चल पड़े। कितने उत्साह से भरा माहौल था प्रवीण जी बहुत अच्छे गायक हैं तो रास्ता गीत संगीत के बीच कटने वाला था।
सबसे पहले मयाली में सकलानी जी ने पौधे लिए और हम गोर्ती की तरफ चल पड़े।वहां विपिन राणा जी पौधे लेने के आए।
पौधे देने के बाद गाडी स्टार्ट की तो गाडी ने तो मना कर दिया जैसे पर जोश से भरे इस दल को कौन रोक सकता था। गाड़ी को धक्के देते हुई आगे ले जाया जा रहा था।भंडारी जी प्रवीण जी और दूसरी गाडी में बैठे दो साथी भी गाडी को धक्का देते हुए आगे तक ले गये।
थोड़ी दूर जाकर प्रवीण जी ने गाड़ी का बोनट खोलकर क्या किया पता नहीं पर गाडी तैयार थी मिशन पर चलने के लिए।
गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा
- कैफ़ भोपाली
आँधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा
- कैफ़ भोपाली
अब हम रामाश्रम पहुँचे वहाँ पौधे दिये। मैने भंडारी जी को टिफिन लेने को बोला पर वे जिस मिशन को पूरा करने पर चले थे खाने की तो शायद उनको जैसे याद ही न थी बोले आगे चलते हैं फ़िर देख लेंगे।
उसके बाद सिलगढ़ को पार करते हुए हम प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पहाड़ियों के बीच बाँगर पट्टी की तरफ चल पड़े।पौंठी पहुँचे वहां पर पौधे और ट्री गार्ड उतारे गए ।हम आगे बढ़े तो पता लगा रोड खराब है ट्रक आगे नहीं जा सकता फ़िर ट्री गॉर्ड उतारकर गाड़ियों में रखे गये हमें अभी दो और विद्यालयों में पहुँचना था।
दोनों गाड़ियाँ आगे बढ़ चली प्रकृति के सौन्दर्य को निहारते हुए हम कैलाश बाँगर पहुँचे। सुन्दर सा विद्यालय और सामने सचिन की कैन्टीन जहाँ खाने के साथ- साथ रिंगाल से सुन्दर कंडे भी बन रही थी।
सुबह से बिना कुछ खाये पिए चले भंडारी जी का अब थोड़ा सा समय मिला तो दिन के 1 बज चुके थे।अब दो चार रोटियों का नाश्ता और दिन का भोजन एक साथ हुआ।वो भी 10-15 मिनट में ही निपट गया देर जो हो रही थी।
किसी के भी चेहरे पर थकान का नाम न था।हँसते-हँसते फ़िर आगे रणधार की तरफ चल पड़े।वहाँ पौधे देने के बाद अब गुप्तकाशी वाले रास्ते पर चलना था जहाँ भदौरिया जी पौधे लेने सड़क तक पहुँचे और बाकी साथी प्रवीण जी वहाँ पर मैगी देख भूख से वही खाने लगे खाने की व्यवस्था क्या होती सबने ऐसे ही आनन्द ले लिया।रा0इ0का0 पाँजणा में एक पौधा स्वयं भंडारी जी द्वारा लगाया गया। हर विद्यालय पौधा देते हुए वे ये बताना कभी नहीं भूलते कि ये नवजात शिशु की तरह हैं इनका पूरा ध्यान रखना।
लगभग 4 बज चुके थे और अभी लिस्ट बहुत लम्बी थी।तेजी से दौड़ती तीनों गाड़ियाँ तैला की तरफ चल पड़ी वहीं पर 7 पौधे और 2 ट्री गॉर्ड उतारे।शाम होने लगी थी और बादल भी घुमड़ घुमड़ करने लगे थे अभी सिद्धसौड़ पौधे पहुंचाने थे जहाँ शिशुपाल रावत जी इन्तजार कर रहे थे वहां भंडारी जी द्वारा पौधे पहुँचाए गये।
अब निकल पड़े अगस्त्यमुनि की तरफ और इतनी बार गाड़ी से चढ़ना उतरना पर पर्यावरण के प्रति ऐसा प्रेम भंडारी जी के मुख पर था कि जैसे थकान तो कुछ होती ही न हो।हम बातों-बातों में अगस्त्यमुनि पहुँच चुके थे।प्रवीण जी के गीत और भंडारी जी के अनुभव,किस्सों से रास्ता बहुत रोचक अनुभवों के साथ, रास्ते में एक-एक पल को हम जी रहे थे।अगस्त्यमुनि से कुछ पहले विचार किया गया लिस्ट बहुत लम्बी थी जहाँ पौधों को पहुँचाना था पर अब रात होने में एक घण्टे से ज्यादा का समय शेष नहीं था।
अब अगले दिन पर सहमति बनी।अगस्त्यमुनि में रोड का काम चल रहा था तो कुछ देर ऐसे ही जाम में रुके रहे पर कोई भी परेशान नहीं था बस पूरे दिन के अनुभवों पर बातचीत हो रही थी।
इस तरह से रात होने तक मैं अपने घर पहुँच चुकी थी पर भंडारी जी को अभी लम्बा सफ़र तय करना था ।लगभग 10 बजे तक ही भंडारी जी अपने घर पहुँच पाए।
उनका समर्पण और पर्यावरण प्रेम हमेशा से ही मुझे प्रेरित करता रहा था।उनके विद्यालय कोट तल्ला में किया हुआ काम आदर्श के रूप में हमारे सामने कुछ करने की सदैव प्रेरणा देता है जो हमारे जनपद के लिए गौरव की बात है।
मैं सौभाग्यशाली हूँ जो मुझे भंडारी जी जैसे प्रेरक व्यक्तित्व के सानिध्य में एक दिन सीखने का मौका मिला।उनका सरल स्वभाव और काम की लगन अद्भुत ही है जो हमेशा प्रेरणा देता रहता है।
कुछ वर्षों बाद ये पौधे विद्यालयों में बच्चों को फल-फूलों के साथ जीवन की प्रेरणा दे रहे होंगे।
किसी दरख़्त से सीखो सलीक़ा जीने का
जो धूप छांव से रिश्ता बनाए रहता है
- अतुल अजनबी
जो धूप छांव से रिश्ता बनाए रहता है
- अतुल अजनबी
अमृता नौटियाल
स0 अ0 विज्ञान
रा0 इ0 का0 तैला सिलगढ़
जखोली रुद्रप्रयाग
आदरणीय भंडारी जी जैसे समर्पण को नमन प्रणाम च।
ReplyDeleteनौटियाल मैम आपकी ऊर्जा सक्रियता लेखन से बबहुत कुछ सीखने को मिलता है वाह नमन आप हमारे गौरव हो
धन्यवाद आप सदैव ही प्रेरित करते रहे हैं।
Deleteबहुत सुन्दर सराहनीय काय॔ प्रकृति ही जीवन है, प्रेम है, और जीने का आधार है।🌳🏡🌳🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद!!हरे रंग से उत्पन्न नीला, नीले रंग से धानी;
Deleteजल है, तो वन संरक्षित, वन है, तो है पानी।
बहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी आपकी जो लेखन कला है। और उसमें जो धार है निश्चित तौर पर एक दिन लेखन की बुलंदियों को आप छुएंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है क्योंकि आप में मैनें शिक्षा व जानने सीखने की अद्भुत कला देखी है ।मैं आपको शुभकामनाये देता हूँ और बुलन्दियों के चरम शीर्ष पर देखना चाहता हूं।
ReplyDeleteजय माँ
आपका आशीर्वाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक शब्दो में आप के द्वारा यात्रा का विवरण पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. भंडारी जी का प्रकृति प्रेम और कर्मठता देखते ही बनती हैंl
ReplyDeleteधन्यवाद!!
DeleteBahut sarahniya mem
ReplyDeleteधन्यवाद!!
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