देवभूमि उत्तराखंड असीम प्राकृतिक सौंदर्य समेटे है| यहां गढ़वाल मंडल के अंतर्गत जनपद रुद्रप्रयाग में अनेक दर्शनीय धार्मिक ,अध्यात्मिक,प्राकृतिक तथा ऐतिहासिक स्थल हैं।यह देवस्थली है, जहां पर प्रकृति ने अपनी सुंदरता को बड़ी खूबसूरती से बिखेरा है। देश-विदेश से पर्यटक और श्रद्धालु आस्था के साथ यहां सदियों से आते हैं । आइए आपको परिचित कराते हैं रुद्रप्रयाग के कुछ ऐसे ही पर्यटन स्थलों से-
फोटो साभार-डॉo विनोद कुमार यादव
पंच प्रयागों में से एक, 610 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रप्रयाग मुख्यालय पर अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का संगम स्थल है। रुद्रप्रयाग में रूद्रनाथ जी का मंदिर है, इसी के नाम पर स्थान का नाम रुद्रप्रयाग है।सतोपंथ हिमनद से निकलने वाली अलकनंदा तथा चौराबाड़ी ग्लेशियर से निकलने वाली मंदाकिनी ,रुद्रप्रयाग में मिलने के बाद अलकनंदा के नाम से जानी जाती है। जो आगे भागीरथी से मिलकर दिव्य गंगा के रूप में प्रकट होती है। दोनों नदियों के संगम पर स्थित रुद्रप्रयाग प्राकृतिक छटा से भरपूर दिव्य स्थल है।
दूरी-
रुद्रप्रयाग बस स्टेशन से 01 किलोमीटर
ऋषिकेश से 142 किलोमीटर
जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से 159 किलोमीटर।
2) कोटेश्वर महादेव
फोटो साभार-अमित रावत
कोटश्वर महादेव रुद्रप्रयाग मुख्यालय के पास बहती अलकनंदा नदी के तट पर है।यहां पर एक प्राचीन गुफा है
जिस में शिव जी का आपरूपी लिंग स्थित हैं।मान्यता है कि यहाँ शिवजी ने भस्मासुर से बचने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की थी | यह गुफा नदी तट से प्रारंभ होकर उसी पर्वत के शीर्ष पर खुलती है | कल-कल करती अलकनंदा और प्राकृतिक गुफा पर्यटकों को आकर्षित करती है।
दूरी-
रुद्रप्रयाग बस स्टेशन से। 3 किलोमीटर
रेलवे स्टेशन ऋषिकेश से 145 किलोमीटर
एयरपोर्ट जौलीग्रांट से 162 किलोमीटर।
फोटो साभार -आलोक नौटियाल
रुद्रप्रयाग जनपद में उखीमठ-चोपता रोड़ पर सारी गांव से 3 किलोमीटर की चढ़ाई पर यह अद्भुत ताल स्थित है। चौखंबा का प्रतिबिंब चारों ओर से घास के मैदान, घने जंगल से घिरी झील पर बिल्कुल साफ दिखाई पड़ता है। अनुपम सौंदर्य से से लबालब यह ताल बर्फबारी के मौसम में कभी -कभी बर्फ से ढक जाता है ।कृष्ण - जन्माष्टमी पर यहां स्थानीय लोगों द्वारा देवरिया मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा इस ताल में सिंघाड़े भी पैदा होते हैं।
दूरी -
रुद्रप्रयाग से 55 किलोमीटर
ऋषिकेश से 195 किलोमीटर।
मनभावन बुग्याल और देवदार,बुराँस के सदाबहार जंगलों के बीच से चोपता, तुंगनाथ और चंद्रशिला का बेस कैंप है। विभिन्न प्रकार के पशु- पक्षियों की प्रजातियों का वास-स्थान चोपता अपनी समृद्ध जैव - विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए अत्यंत सुगम है।
दूरी-
रुद्रप्रयाग से 50 किलोमीटर
ऋषिकेश से 166 किलोमीटर।
फोटो- प्रकाश चंद्र मैठाणी
तुंगनाथ उत्तराखंड में सर्वाधिक ऊंचाई पर (लगभग 3680 मीटर) स्थित शिव मन्दिर है। यह प्राचीन मंदिर पंच केदारों में से तृतीय केदार के नाम से प्रसिद्ध है। अदभुत लगभग चार किलोमीटर दूरी का पहाड़ी रास्ता मखमली बुग्यालों से बीच से होकर दिव्य मंदिर तक पहुंचता है ।चोपता तुंगनाथ मार्ग में जड़ी-बूटी शोध परिसर है।यहाँ पर उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (हैप्रेक), गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल का औषधीय एवं सगंध पादप अध्ययन केंद्र है ।
दूरी -
चोपता से 3 किलोमीटर
रुद्रप्रयाग से चोपता 50 किलोमीटर
ऋषिकेश से 144 किलोमीटर
तुंगनाथ से 1 किलोमीटर की चढ़ाई रास्ते से होते हुए 4000 मीटर की ऊंचाई पर चंद्रशिला चोटी स्थित है। इस चोटी से हिमालय नंदा देवी, त्रिशूल, केदार, बंदरपूंछ तथा चौखंबा के अलौकिक दर्शन होते हैं। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के अद्भुत दृश्य देखने के लिए भारी संख्या में सैलानी आते रहते हैं।
दूरी
चोपता से 4 किलोमीटर
ऋषिकेश से चोपता 166 किलोमीटर
मक्कूमठ में तुंगनाथ मन्दिर फोटो-प्रेम बल्लभ गौड़
भगवान तुंगनाथ शीतकाल में मक्कूमठ में विराजमान रहते हैं । कपाट खुलने पर पैदल शोभायात्रा तुंगनाथ पहुंचती है। लगभग आठ -नौ किलोमीटर की पैदल दूरी पर तुंगनाथ मन्दिर स्थित है। बर्फबारी तथा विभिन्न प्रकार के पक्षियों के वास के कारण यह स्थान पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। यहाँ जगपुड़ा नामक स्थान से सम्पूर्ण हिमदर्शन किया जा सकता है।
दूरी -
रुद्रप्रयाग से मक्कूमठ- 46 किलोमीटर
ऊखीमठ से -32 किलोमीटर
भीरी से मक्कूमठ-16 किलोमीटर
फोटो साभार -राकेश चंद्र सेमवाल
भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठों में से एक कालीमठ मां काली को समर्पित मंदिर है। रुद्रशूल नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख ब्राह्मी लिपि में स्थापित किए गए हैं। अद्वितीय लेखक कालिदास की तपस्थली कालीमठ को कहा जाता है । यह दिव्य मन्दिर केदारनाथ मार्ग के बीच में स्थित है।
कालीमठ मंदिर के पास में एक रक्तबीज शिला स्थित है मान्यता है कि यहां पर काली माता द्वारा दैत्यों का संहार किया गया था।कालीमठ से चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित कबिल्ठा गांव महाकवि कालिदास का जन्म स्थान माना जाता है।
दूरी-
रुद्रप्रयाग से-54 किलोमीटर
ऋषिकेश से दूरी -155 किलोमीटर
फोटो-प्रवीन जोशी
केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार में गिना जाता है। गौरीकुंड से 18 किलोमीटर लंबे पैदल मार्ग द्वारा यहां पहुंचा जाता है। इसके अलावा हवाई सेवाएं भी उपलब्ध है। छ: माह के लिए डोली शीतकाल में ऊखीमठ में वास करती है।केदारनाथ के रक्षक माने जाने वाले भैरवनाथ का यहां पर मंदिर है। यहां पर आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि स्थित है। प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन हेतु भारी संख्या में श्रद्धालु और सैलानी पहुंचते हैं।
दूरी-
रुद्रप्रयाग से 74 किलोमीटर + 14 किलोमीटर पैदल ऋषिकेश से 229 किलोमीटर।
ऋषिकेश केदारनाथ मार्ग पर अगस्त्यमुनि मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है ।पौराणिक मान्यता है कि ऋषि अगस्त्य ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। इसी कारण इस स्थान का नाम अगस्त्यमुनि पड़ा। यहां महर्षि अगस्त्य का प्राचीन मंदिर है।
दूरी -
रुद्रप्रयाग से 18 किलोमीटर
ऋषिकेश से 158 किलोमीटर।
फोटो-प्रवीन जोशी
उत्तराखंड के खूबसूरत- मनोहारी बुग्याल पँवाली काण्ठा रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल जनपद की सीमा पर स्थित है। यह त्रियुगीनारायण और गंगी के बीच कई किलोमीटर में फैला है। यह केदारनाथ और गंगोत्री के मध्य का परंपरागत पैदल मार्ग है। जखोली ब्लॉक के बधाणी ताल से 27 किलोमीटर का पैदल मार्ग तथा टिहरी गढ़वाल घुत्तू से 18 किलोमीटर का पैदल मार्ग है। यह जैवविविधता,प्राकृतिक सुन्दरता ट्रैकिंग के लिए स्थानीय और सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है।
दूरी(सड़क)-
रुद्रप्रयाग से 62 किलोमीटर
मयाली से 31 किलोमीटर
शिव पुत्र कार्तिक स्वामी का यह अलौकिक मंदिर हिमालय की बर्फीली चोटियों के मध्य स्थित है। श्रद्धालुओं के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है। समुद्र तल से लगभग 3050 मीटर की ऊंचाई और कनक चौंरी से 3 किलोमीटर का यह पैदल मार्ग एक ऐसी चोटी पर पहुंचाता है ,जहां से लंबी हिमश्रृंखला के दर्शन किए जा सकते हैं। कनकचौरी से 3 किलोमीटर के पैदल मार्ग पर पत्थर की ओखलियाँ हैं माना जाता है कि यह अप्सराओं की ओखलियाँ हैं।यह रुद्रप्रयाग पोखरी मोटर मार्ग के मध्य कनकचोरी से कौंच पर्वत शिखर पर है।
दूरी
रुद्रप्रयाग से 38 किलोमीटर
फोटो -अमन नौटियाल
तिलवाड़ा टिहरी मोटर मार्ग पर स्थित यह सुंदर पहाड़ी गांव है। यहां से हिमश्रृंखला के अद्भुत दर्शन होते हैं ,साथ ही अपनी जैवविविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां पक्षियों की लगभग 200 प्रजातियां पाई गई हैं। जो पक्षी विशेषज्ञों के लिए आकर्षण का केंद्र है ।यहां की बर्फबारी पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करती है।चिरबटिया रुद्रप्रयाग जनपद का एकमात्र स्थल है जिसको सरकार द्वारा पर्यटक ग्राम के रूप में विकसित किए जाने की योजना है।
दूरी
रुद्रप्रयाग से 40 किलोमीटर
टिहरी से 93 किलोमीटर
फोटो -आलोक नौटियाल
समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर यह सुंदर नैसर्गिक ताल रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लॉक में बांगर पट्टी में स्थित है। अद्भुत प्राकृतिक नजारों और जैव विविधता से यह पूरा क्षेत्र परिपूर्ण है। बर्फबारी ,रंग-बिरंगी चिड़िया और विभिन्न प्रकार की जड़ी- बूटियों के बीच यह ताल आकर्षण का केंद्र है। इस ताल में रंग-बिरंगी गोल्डफिश तथा अन्य प्रजातियों की कई मछलियां हैं।
दूरी
रुद्रप्रयाग से दूरी 62 किलोमीटर
मयाली से 30 किलोमीटर
फोटो साभार -सुनील सेमवाल
मठियाणा देवी यह सिद्ध पीठ मां दुर्गा का मंदिर तिलवाड़ा -सौंराखाल मोटर मार्ग के मध्य स्थित है ।सिलगांव से लगभग 2 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई के बाद इस दिव्य मनोहारी स्थल पर पहुंचते हैं। बुराँश के घने जंगलों के बीच इस चोटी से दूर-दूर हिमदर्शन और विभिन्न पहाड़ी चोटियाँ दिखाई पड़ती है। यहां काफी संख्या में श्रद्धालु और सैलानी आते हैं।यहाँ से 1 किलोमीटर की चढ़ाई पर घंंटा कर्ण का मन्दिर स्थित है।
तिलवाड़ा से दूरी 20 किलोमीटर।
फोटो-प्रवीन जोशी
इंद्रासनी देवी का मंदिर तिलवाड़ा कण्डाली मार्ग पर कण्डाली में स्थित है।मान्यता है कि इस पवित्र पीठ में देवराज इंद्र द्वारा माता इंद्रासनी की पूजा की गयी थी, स्वयं इंद्र भगवती के आसन के रूप में बने थे, इस कारण इसका नाम इंद्रासना पड़ा, बाद में वह इंद्रासणी बोलचाल में हो गया।
दूरी-
तिलवाड़ा से 4.5
रुद्रप्रयाग से14 किलोमीटर
फोटो-प्रवीन जोशी
पंच केदारों में से एक तृतीय केदार मदमहेश्वर में भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है। यहां पहुंचने के लिए उखीमठ से राँसी फ़िर राँसी गांव से 2o किलोमीटर लम्बा किन्तु पैदल मार्ग है। छः माह के लिए डोली यहां से शीतकाल में ऊखीमठ जाती है। समुद्र तल से लगभग 3290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य लिए हुए हैं। यहाँ से थोड़ी सी चढ़ाई के बाद बूढ़ा मद्महेश्वर बुग्याल से चौखंबा पर्वत के भव्य दर्शन होते हैं।मुख्य मन्दिर और बूड़ा मद्मशेश्वर के बीच में एक मनुष्य की आकृति का पत्थर है,इसे *धवाड़ी देवता* के नाम से जाना जाता है जो श्रधालुओं को अपनी तरफ आकर्षित करता है।इस मार्ग पर दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ हैं।
दूरी
रुद्रप्रयाग से
ऊखीमठ से
फोटो-प्रवीन जोशी
यह पौराणिक विष्णु भगवान का मंदिर शिव पार्वती का विवाह स्थल कहा जाता है। माना जाता है कि यहां पर हवन - कुंड में जल रही अग्नि युगों से जलती आ रही है। यह हिंदुओं का लोकप्रिय तीर्थस्थल है। मंदिर के सामने ब्रह्म- शिला को दिव्य विवाह- स्थल माना जाता है। यहां पर अनेक विवाह संपन्न होते हैं मंदिर के बाहर ही सरस्वती गंगा नामक एक पवित्र धारा निकलती है।
दूरी
रुद्रप्रयाग से
सोनप्रयाग से
फोटो-अरुण चमोली
यह लस्तर और मंदाकिनी नदी का संगम स्थल है ।जो कि ऐतिहासिक है क्योंकि यहां जलधाराएं संगम पर सूर्य को अर्घ देते भी पूर्व दिशा की ओर प्रवाहमान है। यहां *बैशाखी* का मेला लगता है जो 3 दिन तक चलता है। जिसमें सभी स्थानीय देवी-देवताओं की डोलियां स्नान के लिए लाई
जाती हैं। अब यह मेला स्थानीय विकास मेले के रूप में भूमिका अदा कर रहा है।
दूरी -
रुद्रप्रयाग से
दूरी ऋषिकेश से।
फोटो-दिनेश चंद्र थपलियाल
धार्मिक ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ गुप्तकाशी प्राकृतिक सौंदर्य को अपने आप में समेटे हुए हैं। यहां पर भगवान विश्वनाथ का एक भव्य मंदिर है। मान्यता है कि यहां पांडवों को दर्शन देने के पश्चात भगवान शिव गुप्त वास पर चले गए थे। मंदिर - परिसर में मणिकर्णिका कुंड है ।जिसमें गंगा और यमुना की जलधाराएं गिरती हैं। इसके अतिरिक्त यहां अर्धनारीश्वर चंद्रशेखर महादेव मंदिर तथा पांडवों की मूर्तियां पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बीच यह यह मन्दिर केदारनाथ मार्ग में गुप्तकाशी से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां वर्ष में बैसाखी दो गते मेला लगता है। पूरे क्षेत्र से श्रद्धालु भगवान जाख देवता के दर्शन के लिए आते हैं। इस मेले की तैयारियां स्थानीय लोगों द्वारा चार-पांच दिन पहले से की जाती है। बांज की लकड़ियों को जलाकर कोयला तैयार किया जाता है, जिस पर जाख देवता किसी मनुष्य पर अवतरित होकर नाचते हैं जबकि मनुष्य को कोई क्षति नहीं पहुंचती। जो कि श्रद्धालुओं को श्रद्धा से अभिभूत करते हैं।
सुंदर प्राकृतिक स्थान भक्ति और श्रद्धा का केंद्र ऊखीमठ रुद्रप्रयाग चोपता मुख्य मोटर मार्ग पर स्थित है। समुद्र तल से 1311 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर यह स्थान मद्महेश्वर और केदारनाथ की डोली का छह माह वास स्थान है। बाणासुर की बेटी उषा तथा श्रीकृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध का विवाह स्थल होने के कारण इस स्थान का नाम उषामठ था, कालांतर में जो ऊखीमठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
फोटो साभार-जसपाल सिंह पुजारी
गुप्तकाशी से लगभग 3 किलोमीटर गौरीकुंड राजमार्ग पर नारायणकोटी गांव स्थित है। नारायण का अर्थ है भगवान विष्णु और कोटि का अर्थ है करोड़ों अर्थात करोड़ों मंदिरों का समूह। पौराणिक कथा के अनुसार नारायण कोटी स्थान पर 360 मन्दिर निर्मित किए गए थे। जो सभी हिंदू देवी-देवताओं के थे । राज्य का यह पहला स्थान है जहां पर नवग्रह देवताओं के मंदिर स्थित है। वर्तमान समय में अधिकांश मूर्तियां खंडित अवस्था में है। यहां पर मंदिर समूह में ही मणिकर्णिका कुंड और द्रोपदी तरणताल स्थित है।
वासुकी ताल समुद्र तल से 14200 फीट,केदारनाथ धाम से 7 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह चारों और ब्रह्मकमलों एवं भव्य पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। इसके ठीक सामने त्रियुगी नारायण मंदिर है और यहां से खतलिंग ग्लेशियर के लिए रास्ता निकलता है। इस ताल का जल गहरे नीले रंग का है।पथारोहियों और अध्यात्म खोजी मनुष्यों के लिए सदैव से आकर्षण का केंद्र रहा है।
केदारनाथ से दूरी-7 किलोमीटर
नंदी कुंड के रास्ते में पड़ने वाला 3 से 4 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत लंबा-चौड़ा विशाल मैदान है ।यह उखीमठ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।इस मैदान से 3 किलोमीटर की दूरी पर ही नंदी कुंड है। मान्यता है कि कुछ समय के लिए पांडवों का यहां निवास रहा , जिस दौरान उन्होंने यहां पर धान उगायी थी।यहीं पास में ही एक नहर के भग्नावशेष भी हैं, जिन्हें पाण्डवकालीन बताया जाता है |अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर रास्ता ट्रैकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र है।
इस ऐतिहासिक स्थान से केदारनाथ की पैदल दूरी लगभग 14 किलोमीटर है यहां पर गर्म पानी के सोते हैं। यह समुद्र तल से 6502 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर मां पार्वती का दिव्य मंदिर तथा गौरी झील है ।जो 2013 की आपदा के बाद से स्थिति जलधारा के रूप में रह गयी है। अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के साथ-साथ यह केदारनाथ का बेस कैंप होने से पर्यटकों तथा श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में है।
दूरी
रुद्रप्रयाग से दूरी
ऋषिकेश से दूरी-
यह मयाली टिहरी मोटर मार्ग पर पालाकुराली से करीब 2 किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित है। विकास खंड जखोली में समुद्र तल से लगभग 2000 मीटर की ऊंचाई पर हिलाऊँ गाड इसी स्थान से उद्गमित होती है। यहां पर मुख्य रूप से बाँज, बुराँश,देवदार,खर्सू, मोरू आदि के सघन वन तथा घास के मनभावन मैदान हैं।
दूरी
रुद्रप्रयाग से पालकुराली-
मयाली से पालकुराली-
फोटो साभार-हेमंत चौकियाल
ऊखीमठ ब्लॉक में रांसी से लगभग 30 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद मनणी बुग्याल पहुंचा जाता है। इसके मुख्य पड़ाव सनेरा,पटुड़ी,विनायकधार, सीला समुद्र हैं ।यह फूलों की घाटी की तरह अद्भुत फूलों से भरा हुआ बुग्याल है यहां पर इतने प्रकार के पुष्प प्रजातियाँ हैं कि जिनको गिनना मुश्किल है। केदारखंड के अनुसार भगवती के क्रुद्ध होने पर यहां पर उन्हें मनाया गया था इसलिए इस स्थान का नाम मनणी कहा जाता है । इसके अलावा मान्यता है कि यहां पर पांडवों के अस्त्र-शस्त भी रखे हैं। जिनकी अभी तक भी राँसी गांव के भंडारी लोगों द्वारा सुरक्षा की जाती है। । मंदिर बहुत छोटा परन्तु कत्यूरी शैली का जान पड़ता है,जहां पर मंडणा माई की मूर्ति(जिसमें उनका एक पांव जमीन में लेटे शिव के बदन पर है)
दूरी
रुद्रप्रयाग से रांसी-
फोटो आभार -आलोक नौटियाल
रुच्छ महादेव कालीमठ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर गुप्तकाशी- चौमासी मोटर मार्ग पर खोनू गांव से 1 कि0मी0की पैदल दूरी पर है | सड़क से करीब 1 किलोमीटर नीचे उतरने पर खाम तथा मनणा नामक नदी के संगम पर बीच में एक बड़ी सी प्रस्तर शिला को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। यहां पर फण मण्डना माई का मंदिर है।इस स्थान का वर्णन केदार खंड में गया। यह तीर्थ *अर्धगया *तीर्थ के रूप में वर्णित किया गया है |
दूरी
रुद्रप्रयाग से।
फोटो साभार-अनिल सेमवाल
यह स्थान जखोली ब्लॉक की बांगर पट्टी में बधाणी ताल से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां शिव का एक मंदिर है। यह बधानी ताल से पँवाली कांठा का ट्रैकिंग मार्ग भी है। इस स्थान पर बांगर पट्टी के पशुपालक छ: माह निवास करते हैं यह अद्भुत सुंदर बुग्याल क्षेत्र है। यह लस्तर का उद्गम स्थल भी है। यहां पर आप रूपी शिवलिंग है, इसके नीचे से तीन प्रकार का पानी निकलता है। उन्हीं में से एक में पानी तांबे का पानी कहा माना जाता है,जिससे यहां पर तिलक किया जाता है।
दूरी
रुद्रप्रयाग से 62 किलोमीटर
मयाली से 31 किलोमीटर
यह रमणीक बुग्याल विकासखण्ड जखोली के उरोली,इजरा के अन्तर्गत आता है।यह मोटर मार्ग से लगभग आधा किलोमीटर पैदल दूरी पर है।यहाँ देवदार का जंगल,नागेन्द्र देवता की पवित्र कुण्डी,आराध्य देव नर्सिंग भगवान का भव्य मन्दिर जहाँ त्रिशूल और घंटियाँ हैं।यहाँ से दिखने वाले हिमालय का अर्ध चंद्राकार दृश्य मन मोह लेता है।यहाँ प्रत्येक वर्ष अप्रैल,मई माह में नागेन्द्र देवता धार्मिक ऐवम पर्यटन विकास मेले का आयोजन स्थानीय लोगो की जन सहभागिता से किया जाता है।यहीं पर स्थित धारकूड़ा सौड़ भारत के मानचित्र की तरह दिखने वाला घास का मैदान आकर्षण का केंद्र है।
i have visited many of these beautiful places....for me it is like refreshment of memories i already had. ......beautifully framed...
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