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Monday, January 4, 2021

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948 -49) Radhakrishnan Commission University Education Commission


स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग - विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग।


विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के निर्माण का सुझाव  भारत सरकार को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड और अंतर्विश्वविद्यालय शिक्षा परिषद के द्वारा दिया गया।

 विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की नियुक्ति-4 नवंबर 1948


आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन।

 कुल 10 सदस्य -

डॉ0 लक्ष्मणस्वामी मुदालियर 
आर्थर मॉर्गन
डॉ0 सर जेम्स 
 डॉक्टर जान टिजर्ट 
डॉक्टर जाकिर हुसैन
 डॉक्टर ताराचंद
 डॉक्टर मेघनाथ साहा 
 डॉक्टर कर्म नारायण बहल
 श्री निर्मल कुमार सिद्धांत आयोग के सचिव

 
रिपोर्ट प्रस्तुत की 25 अगस्त 1949।

 विश्वविद्यालय शिक्षा का उद्देश्य-
 युवकों में नेतृत्व क्षमता का विकास
 जनतांत्रिक सफल प्रणाली
 विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार 

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने सुझाव दिया कि शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा जाए ।
(शिक्षा को समवर्ती सूची में 42 वें संविधान संशोधन के तहत 1976 में रखा गया) 

वित्तीय भार केंद्र और प्रांतीय सरकारें दोनों मिलकर उठाएंगे।


 विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने  महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय अनुदान समिति के स्थान पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी का गठन किया जाएगा।
(UGC की स्थापना 1953 में हुई और इसको 1956 में स्वायत्त संस्था का दर्जा दिया गया ।)

 विश्वविद्यालय का संगठन-
स्नातक (graduation)3 वर्ष का 
स्नातकोत्तर( post graduation)2 वर्ष का 
अनुसंधान न्यूनतम 2 वर्ष का होगा।


तीन वर्ग -
कला,विज्ञान और व्यवसायिक तकनीकी ।


ग्रामीण विश्वविद्यालय खोलने की सिफारिश की गई साथ ही उच्च शिक्षा और शोध कार्य के लिए कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की बात कही गई ।




व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के 6 वर्ग -
कृषि
वाणिज्य
इंजीनियरिंग एवं तकनीकी
चिकित्सा
कानून 
शिक्षक प्रशिक्षण 



पाठ्यक्रम में व्यापकता और लचीलापन लाने की बात की गई।

 स्त्री शिक्षा के लिए सह शिक्षा को प्रोत्साहन देने की बात कही गई और स्त्रियों के लिए स्त्री उचित शिक्षा की बात कही गई।

 ग्रामीण विश्वविद्यालय की बात की गई तठा अखिल भारतीय स्तर पर एक ग्रामीण शिक्षा परिषद की स्थापना ।


छात्र कल्याण के लिए प्रॉक्टोरियल बोर्ड प्रशासन में प्रशिक्षण की स्थापना की बात कही गई।


 प्राथमिक माध्यमिक और उच्च शिक्षा में कृषि को एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए।

 कृषि स्कूल कॉलेज तथा फॉर्म ग्रामीण अंचलों में खोले जाने चाहिए।


चिकित्सा शिक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण होना चाहिए अधिकतम छात्र संख्या 100 और प्रत्येक छात्र के लिए 10 रोगी होने चाहिए ।


मूल्यांकन और परीक्षा के लिए परीक्षा को 5 वर्ष का अनुभव होना चाहिए।

 स्नातकोत्तर एवं व्यवसायिक परीक्षा में मौखिक परीक्षा का आयोजन भी किया जाना चाहिए।

 इसके लिए मूल्यांकन के लिए 3 सदस्य एक पूर्णकालिक बोर्ड की स्थापना का सुझाव दिया साथ ही वस्तुनिष्तठ  परीक्षाएं और पाठ्यक्रम में संशोधन की बात कही गई।

कार्य दिवस 180 होना चाहिए जो कि परीक्षा को छोड़कर होने चाहिए ।

विश्व विद्यालयों में विद्यार्थियों की अधिकतम संख्या 3000 और संबंध कॉलेजों में 1500 से अधिक नहीं होना चाहिए।


 विश्वविद्यालय में 18 वर्ष की आयु हो जाने पर ही प्रवेश दिया जाना चाहिए।

मूल्यांकन की श्रेणियां प्रथम श्रेणी 70% द्वितीय श्रेणी 55% और तृतीय श्रेणी 40% निर्धारित होनी चाहिए।

शिक्षकों की 4 श्रेणियाँ-
प्रोफेसर
रीडर
लेक्चरार
इंस्ट्रक्टर 

अध्यापकों व अधिकारियों में विवाद सुलझाने के लिए न्यायधीश की नियुक्ति।

सेवानिवृति आयु-60/64

अध्ययन के लिए अवकाश 1 बार में 1 वर्ष और पूरे सेवाकाल में 3 वर्ष।

अध्यापन कार्य सप्ताह में अधिकतम् 18 घण्टे।

ग्रामीण उच्च शिक्षा समिति की स्थापना- 1954

NSS की स्थापना 24 सितम्बर 1969

NCC  की स्थापना 16 जुलाई 1948

 
देश का प्रथम ग्रामीण विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश 1991 में स्थापित किया गया - महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय।


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धन्यवाद।।









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