रुद्रप्रयाग में झमाझम बारिश के बीच कमला भसीन को सुनना बहुत ही रोचक अनुभव था। सबसे पहले कमला जी द्वारा भारतीय संविधान की विशेषताओं और संघर्षपूर्ण जीवन से उच्च पद पर पहुंचने की अंबेडकर जी की जीवन यात्रा और योगदान के बारे में बताया। समाज में नारी तथा संविधान उनके अधिकारों के बारे में बातचीत करती हैं। शुरुआत अपने घर से करती हैं और बताती हैं कि कैसे पुरुषसत्ता घर-घर में विद्यमान है। हम समाज की बात तो बाद में करें, किस प्रकार से गुस्सा करना ,हाथ चलाने का अधिकार पिता का होता है। बड़े-बड़े निर्णय पर अधिकार पिता का ही होता है ।घर का बंटवारा होता है तो भाइयों के बीच और बेटी का कन्यादान कर दिया जाता है। क्या कन्या कोई गाय बकरी या वस्तु है ?हमारा संविधान हर नागरिक को जन्म से स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह सच है कितने लोगों ने संविधान को पढ़ा है और अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझने की कोशिश की है। कितने परिवारों ने अपने बच्चों को संविधान पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है? उनका एक प्रश्न वाकई हमारे सामने था ।उन्होंने इस तरफ भी इशारा किया सबसे ज्यादा किस प्रकार असमानता,हिंसा शिक्षित समाज में अधिक पाई गई है।शिक्षा डिग्री नहीं है तो शिक्षा वह है जो हमें सोचने की आजादी दे।उन्होंने बताया कि विश्व की आधी जनसंख्या जो कि नारी है कितने कम प्रतिशत में शीर्ष पदों पर कार्य कर रही है यह भारत में ही नहीं विश्वव्यापी समस्या है ।इन सभी बातों को समझ में लाने की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी घर परिवार के साथ-साथ शिक्षकों की भी बन जाती है।
एक प्रश्न के जवाब में बताती है कि विद्यालयों में ड्रेस से लेकर बैठने की व्यवस्था तक क्या असमानता पैदा नहीं करती ?उन्होंने बताया कि क्या हम सेक्स और जेंडर को पहले समझ पाते हैं? अधिकतर नहीं।
इसको उन्होंने इसको उन्होंने इस प्रकार से बताया कि सेक्स शारीरिक है यानी ऐसा फर्क जो औरत और मर्द के जननांगों में और उनसे जुड़े कार्यों में दिखाई देता है। यह प्रकृति के देन है।जिसको बदला नहीं जा सकता।जेंडर सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था है, जो मनुष्य ने बनाई है कि स्त्री कैसे व्यवहार करेगी पुरुष कैसे, इनकी भूमिका है क्या होंगी। जेंडर बदला जा सकता है क्योंकि यह समाज ने निर्धारित किया है।यह मनुष्य ने बनाया है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के निर्माण में उत्तराखंड की महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान का भी जिक्र किया।
विद्यालयों में कितनी बार हम जाने-अनजाने जेंडर को लेकर भूमिकाएं निर्धारित करते हैं और यह चलता ही जाता है। स्वागत, स्वागत में प्रार्थना में लड़कियों को आगे रखना, हमारे बुलाने का तरीका 2 लड़के और 2 लड़कियां आओ।भारी काम हो तो लड़के आओ जबकि घर पर घास का बोझ लडकियां ही उठाती हैं।इन असमानताओं को दूर करने के एक शिक्षक के रूप में विद्यालयों में हमें कितने अवसर मिलते हैं।ऐसे अनेक सवालों के साथ दिल्ली से उत्तराखंड के सुदूर पहाडियों तक पहुँचती यह बुलंद आवाज हमें उद्वेलित कर गयी।
इसको उन्होंने इसको उन्होंने इस प्रकार से बताया कि सेक्स शारीरिक है यानी ऐसा फर्क जो औरत और मर्द के जननांगों में और उनसे जुड़े कार्यों में दिखाई देता है। यह प्रकृति के देन है।जिसको बदला नहीं जा सकता।जेंडर सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था है, जो मनुष्य ने बनाई है कि स्त्री कैसे व्यवहार करेगी पुरुष कैसे, इनकी भूमिका है क्या होंगी। जेंडर बदला जा सकता है क्योंकि यह समाज ने निर्धारित किया है।यह मनुष्य ने बनाया है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के निर्माण में उत्तराखंड की महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान का भी जिक्र किया।
विद्यालयों में कितनी बार हम जाने-अनजाने जेंडर को लेकर भूमिकाएं निर्धारित करते हैं और यह चलता ही जाता है। स्वागत, स्वागत में प्रार्थना में लड़कियों को आगे रखना, हमारे बुलाने का तरीका 2 लड़के और 2 लड़कियां आओ।भारी काम हो तो लड़के आओ जबकि घर पर घास का बोझ लडकियां ही उठाती हैं।इन असमानताओं को दूर करने के एक शिक्षक के रूप में विद्यालयों में हमें कितने अवसर मिलते हैं।ऐसे अनेक सवालों के साथ दिल्ली से उत्तराखंड के सुदूर पहाडियों तक पहुँचती यह बुलंद आवाज हमें उद्वेलित कर गयी।
इस कॉन्फरेंस की जानकारी मुझे अजीम प्रेमजी फाउंडेशन पिथोरागढ से शोज़ाब अब्बास और रुद्रप्रयाग से रिचा जी और शफीक जी द्वारा दी गई थी इन साथियों का हार्दिक आभार।😇
लेक्चर तो सुन नही पाए लेकिन आपके लिखे इस आर्टिकल से भी काफी कुछ चीजे समझने को मिली. बहुत आभार.
ReplyDeleteधन्यवाद....
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